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स्थळ : Mumbai, IN
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sky is clear१८ पुराण और उनका सार (हिंदी)
ब्रह्म पुराण
पुराणों की दी गयी सूची में इस पुराण को प्रथम स्थान पर रखा जाता है, इस पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति, पृथु का पावन चरित्र, सूर्य एवं चन्द्रवंश का वर्णन, श्रीकृष्ण-चरित्र, कल्पान्तजीवी मार्कण्डेय मुनि का चरित्र, तीर्थों का माहात्म्य एवं अनेक भक्तिपरक आख्यानों की सुन्दर चर्चा की गयी है| भगवान् श्रीकृष्ण की ब्रह्मरूप में विस्तृत व्याख्या होने के कारण यह ब्रह्मपुराण के नाम से प्रसिद्ध है| इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है|
इसमें ‘ब्रह्म’ को सर्वोपरि माना गया है| इसीलिए इस पुराण को प्रथम स्थान दिया गया है| पुराणों की परम्परा के अनुसार ‘ब्रह्म पुराण’ में सृष्टि के समस्त लोकों और भारतवर्ष का भी वर्णन किया गया है| कलियुग का वर्णन भी इस पुराण में विस्तार से उपलब्ध है| ब्रह्म के आदि होने के कारण इस पुराण को आदिपुरण भी कहा जाता है| व्यास मुनि ने इसे सर्वप्रथम लिखा है| इसमें दस सहस्र श्लोक हैं| प्राचीन पवित्र भूमि नैमिष अरण्य में व्यास शिष्य सूत मुनि ने यह पुराण समाहित ऋषि वृन्द में सुनाया था| इसमें सृष्टि, मनुवंश, देव देवता, प्राणि, पुथ्वी, भूगोल, नरक, स्वर्ग, मंदिर, तीर्थ आदि का निरूपण है| शिव-पार्वती विवाह, कृष्ण लीला, विष्णु अवतार, विष्णु पूजन, वर्णाश्रम, श्राद्धकर्म, आदि का विचार है|
सम्पूर्ण ‘ब्रह्म पुराण’ में २४६ अध्याय हैं| इसकी श्लोक संख्या लगभग १०,००० है| इस पुराण की कथा लोमहर्षण सूत जी एवं शौनक ऋषियों के संवाद के माध्यम से वर्णित है| यही कथा प्राचीन काल में ब्रह्मा ने दक्ष प्रजापति को सुनायी थी|
ब्रह्माण्ड पुराण
ब्रह्माण्ड का वर्णन करनेवाले वायु ने व्यास जी को दिये हुए इस बारह हजार श्लोकों के पुराण में विश्व का पौराणिक भूगोल, विश्व खगोल, अध्यात्मरामायण आदि विषय हैं| हिंदू संस्कृति की स्वाभाविक व स्पष्ट रूपरेखा वैदिक साहित्य में सर्वाधिक पुराणों से ही मिलती हे, यद्यपि यह श्रेय वेदों को दिया जाता है| कहा जाता है कि वास्तव में वेद भी अपनी विषय व्याख्या के लिये पुराणों पर ही आश्रित हैं| यह पुराण भविष्य कल्पों से युक्त और बारह हजार श्लोकों से युक्त है, इसके चार पद है, पहला प्रक्रियापाद दूसरा अनुषपाद तीसरा उपोदघात और चौथा उपसंहारपाद है| पहले के दो पादों को पूर्व भाग कहा जाता है, तृतीय पाद ही मध्यम भाग है, और चतुर्थ पाद को उत्तम भाग कहा गया है| पुराणों के विविध पांचों लक्षण ‘ब्रह्माण्ड पुराण’ में उपलब्ध होते हैं| इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय प्राचीन भारतीय ऋषि जावा द्वीप वर्तमान में इण्डोनेशिया लेकर गए थे| इस पुराण का अनुवाद वहां के प्राचीन कवि-भाषा में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है|
ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्मवैवर्त पुराण वेदमार्ग का दसवाँ पुराण है| इसमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तृत वर्णन, श्रीराधा की गोलोक-लीला तथा अवतार-लीलाका सुन्दर विवेचन, विभिन्न देवताओं की महिमा एवं एकरूपता और उनकी साधना-उपासनाका सुन्दर निरूपण किया गया है| अनेक भक्तिपरक आख्यानों एवं स्तोत्रोंका भी इसमें अद्भुत संग्रह है| इस पुराण में चार खण्ड हैं| ब्रह्मखण्ड, प्रकृतिखण्ड, श्रीकृष्णजन्मखण्ड और गणेशखण्ड| इन चारों खण्डों से युक्त यह पुराण अठारह हजार श्लोकों का बताया गया है| इन चारों में दो सौ अठारह अध्याय हैं| यह वैष्णव पुराण है| इस पुराण में श्रीकृष्ण को ही प्रमुख इष्ट मानकर उन्हें सृष्टि का कारण बताया गया है| ‘ब्रह्मवैवर्त’ शब्द का अर्थ है- ब्रह्म का विवर्त अर्थात् ब्रह्म की रूपान्तर राशि| ब्रह्म की रूपान्तर राशि ‘प्रकृति’ है|
प्रकृति के विविध परिणामों का प्रतिपादन ही इस ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में प्राप्त होता है| कहने का तात्पर्य है प्रकृति के भिन्न-भिन्न परिणामों का जहां प्रतिपादन हो वही पुराण ब्रह्मवैवर्त कहलाता है| विष्णु के अवतार कृष्ण का उल्लेख यद्यपि कई पुराणों में मिलता है, किन्तु इस पुराण में यह विषय भिन्नता लिए हुए है| ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में कृष्ण को ही ‘परब्रह्म’ माना गया है, जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म होता है| ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन ‘भागवत पुराण’ से काफी भिन्न है| ‘भागवत पुराण’ का वर्णन साहित्यिक और सात्विक है जबकि ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ का वर्णन श्रृंगार रस से परिपूर्ण है| इस पुराण में सृष्टि का मूल श्रीकृष्ण को बताया गया है|
मार्कण्डेय पुराण
मार्कण्डेय पुराण प्राचीनतम पुराणों में से एक है| यह लोकप्रिय पुराण मार्कण्डेय ऋषि ने क्रौष्ठिक को सुनाया था| इसमें ऋग्वेद की भांति अग्नि, इन्द्र, सूर्य आदि देवताओं पर विवेचन है और गृहस्थाश्रम, दिनचर्या, नित्यकर्म आदि की चर्चा है| भगवती की विस्तृत महिमा का परिचय देने वाले इस पुराण में दुर्गासप्तशती की कथा एवं माहात्म्य, हरिश्चन्द्र की कथा, मदालसा-चरित्र, अत्रि-अनसूया की कथा, दत्तात्रेय-चरित्र आदि अनेक सुन्दर कथाओं का विस्तृत वर्णन है| मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार श्लोकों का संग्रह है| १३७ अध्याय वाले इस पुराण में १ से ४२ वें अध्याय तक के वक्ता जैमिनि और श्रोता पक्षी हैं, ४३ वें से ९० अध्याय में वक्ता मार्कण्डेय और श्रोता क्रप्टुकि हैं तथा इसके बाद के अंश के वक्ता सुमेधा तथा श्रोता सुरथ-समाधि हैं| मार्कण्डेय पुराण आकार में छोटा है| इसमें एक सौ सैंतीस अध्यायों में ही लगभग नौ हजार श्लोक हैं| मार्कण्डेय ऋषि द्वारा इसके कथन से इसका नाम ‘मार्कण्डेय पुराण’ पड़ा|
भविष्य पुराण
यह पुराण विषय-वस्तु एवं वर्णन-शैलीकी दृष्टि से अत्यन्त उच्च कोटि का है| इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, अनेकों आख्यान, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद शास्त्र के विषयों का अद्भुत संग्रह है| वेताल-विक्रम-संवाद के रूप में कथा-प्रबन्ध इसमें अत्यन्त रमणीय है| इसके अतिरिक्त इसमें नित्यकर्म, संस्कार, सामुद्रिक लक्षण, शान्ति तथा पौष्टिक कर्म आराधना और अनेक व्रतोंका भी विस्तृत वर्णन है| भविष्य पुराण में भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है| यह पुराण भारतवर्ष के वर्तमान समस्त आधुनिक इतिहास का आधार है| इसके प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहासकी महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है| इतिहास लेखकोंने प्रायः इसीका आधार लिया है| इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदि का प्रामाणिक इतिहास निरूपित है|
इसके मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है| इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं| इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी पुराण, धर्मशास्त्रमें मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में| हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है| भविष्य पुराण के अनुसार, इसके श्लोकों की संख्या पचास हज़ार के लगभग होनी चाहिए, परन्तु वर्तमान में कुल १४,००० श्लोक ही उपलब्ध हैं| इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, आख्यान-साहित्य, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद से सम्बन्धित विषयों का अद्भुत संयोजन है|
वामन पुराण
वामन पुराण में मुख्यरूप से भगवान विष्णु के दिव्य माहात्म्य का व्याख्यान है| विष्णु के वामन अवतार से संबंधित यह दस हजार श्लोकों का पुराण शिवलिंग पूजा, गणेश -स्कन्द आख्यान, शिवपार्वती विवाह आदि विषयों से परिपूर्ण है| इसमें भगवान वामन, नर-नारायण, भगवती दुर्गा के उत्तम चरित्र के साथ भक्त प्रह्लाद तथा श्रीदामा आदि भक्तों के बड़े रम्य आख्यान हैं| इसके अतिरिक्त, शिवजीका लीला-चरित्र, जीवमूत वाहन-आख्यान, दक्ष-यज्ञ-विध्वंस, हरिका कालरूप, कामदेव-दहन, अंधक-वध, लक्ष्मी-चरित्र, प्रेतोपाख्यान, विभिन्न व्रत, स्तोत्र और अन्त में विष्णुभक्ति के उपदेशों के साथ इस पुराणका उपसंहार हुआ है| इस पुराण में श्लोकों की संख्या दस हजार है, इस पुराण में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है| सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है| बीच-बीच में अध्यात्म-विवेचन, कलिकर्म और सदाचार आदि पर भी प्रकाश डाला गया है|
विष्णु पुराण
विष्णुपुराण अट्ठारह पुराणों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन है| यह श्री पराशर ऋषि द्वारा प्रणीत है| यह इसके प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के आदिकारण, नित्य, अक्षय, अव्यय तथा एकरस हैं| इस पुराण में आकाश आदि भूतों का परिमाण, समुद्र, सूर्य आदि का परिमाण, पर्वत, देवतादि की उत्पत्ति, मन्वन्तर, कल्प-विभाग, सम्पूर्ण धर्म एवं देवर्षि तथा राजर्षियों के चरित्र का विशद वर्णन है| भगवान विष्णु प्रधान होने के बाद भी यह पुराण विष्णु और शिव के अभिन्नता का प्रतिपादक है| विष्णु पुराण में मुख्य रूप से श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन है, यद्यपि संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है|
अष्टादश महापुराणों में श्रीविष्णुपुराण का स्थान बहुत ऊँचा है| इसमें अन्य विषयों के साथ भूगोल, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, राजवंश और श्रीकृष्ण-चरित्र आदि कई प्रंसगों का बड़ा ही अनूठा और विशद वर्णन किया गया है| श्री विष्णु पुराण में भी इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की सर्वव्यापकता, ध्रुव प्रह्लाद, वेनु, आदि राजाओं के वर्णन एवं उनकी जीवन गाथा, विकास की परम्परा, कृषि गोरक्षा आदि कार्यों का संचालन, भारत आदि नौ खण्ड मेदिनी, सप्त सागरों के वर्णन, अद्यः एवं अर्द्ध लोकों का वर्णन, चौदह विद्याओं, वैवस्वत मनु, इक्ष्वाकु, कश्यप, पुरुवंश, कुरुवंश, यदुवंश के वर्णन, कल्पान्त के महाप्रलय का वर्णन आदि विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है| भक्ति और ज्ञान की प्रशान्त धारा तो इसमें सर्वत्र ही प्रच्छन्न रूप से बह रही है|
यद्यपि यह पुराण विष्णुपरक है तो भी भगवान शंकर के लिये इसमे कहीं भी अनुदार भाव प्रकट नहीं किया गया| सम्पूर्ण ग्रन्थ में शिवजी का प्रसंग सम्भवतः श्रीकृ्ष्ण-बाणासुर-संग्राम में ही आता है, सो वहाँ स्वयं भगवान कृष्ण महादेवजी के साथ अपनी अभिन्नता प्रकट करते हुए श्रीमुखसे कहते हैं त्वया यदभयं दत्तं तद्दत्तमखिलं मया| मत्तोऽविभिन्नमात्मानं द्रुष्टुमर्हसि शङ्कर| योऽहं स त्वं जगच्चेदं सदेवासुरमानुषम्| मत्तो नान्यदशेषं यत्तत्त्वं ज्ञातुमिहार्हसि| अविद्यामोहितात्मानः पुरुषा भिन्नदर्शिनः| वन्दति भेदं पश्यन्ति चावयोरन्तरं हर॥
भागवत पुराण
भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है| इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं| इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमे कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है| इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है| परंपरागत तौर पर इस पुराण का रचयिता वेद व्यास को माना जाता हैं|
श्रीमदभागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है| भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग का तो मानो सोपान ही है| इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेमकी सुगन्धि है| इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है| भागवत पुराण में महर्षि सूत गोस्वामी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं| साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं| सुत गोस्वामी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी| इसमें कुल बारह सकन्ध हैं| प्रथम काण्ड में सभी अवतारों को सारांश रूप में वर्णन किया गया है|
नारद पुराण
नारद पुराण या ‘नारदीय पुराण’ अट्ठारह महुराणों में से एक पुराण है| यह स्वयं महर्षि नारद के मुख से कहा गया एक वैष्णव पुराण है| महर्षि व्यास द्वारा लिपिबद्ध किए गए १८ पुराणों में से एक है| प्रारंभ में यह २५,००० श्लोकों का संग्रह था लेकिन वर्तमान में उपलब्ध संस्करण में केवल २२,००० श्लोक ही उपलब्ध है| इस पुराण के विषय में कहा जाता है कि इसका श्रवण करने से पापी व्यक्ति भी पाप मुक्त हो जाते हैं| पापियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो व्यक्ति ब्रह्महत्या का दोषी है, मदिरापान करता है, मांस भक्षण करता है, वेश्यागमन करता हे, तामसिक भोजन खाता है तथा चोरी करता है; वह पापी है|
इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय विष्णु भक्ति है| संपूर्ण नारद पुराण दो प्रमुख भागों में विभाजित है| पहले भाग में चार अध्याय हैं जिसमें सुत और शौनक का संवाद है, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा के कर्मकांड, विभिन्न मासों में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों के अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं| दूसरे भाग में भगवान विष्णु के अनेक अवतारों की कथाएँ हैं| यह पुराण इस दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें अठारह पुराणों की अनुक्रमणिका दी गई है|
गरुड़ पुराण
गरूड़ पुराण वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित है और सनातन धर्म में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है| इसलिये सनातन हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है| इस पुराणके अधिष्ठातृ देव भगवान विष्णु हैं| इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों में सर्व साधारणको प्रवृत्त करने के लिये अनेक लौकिक और पारलौकिक फलोंका वर्णन किया गया है| आरम्भ में मनु से सृष्टि की उत्पत्ति, ध्रुव चरित्र और बारह आदित्यों की कथा प्राप्त होती है| उसके उपरान्त सूर्य और चन्द्र ग्रहों के मंत्र, शिव-पार्वती मंत्र, इन्द्र से सम्बन्धित मंत्र, सरस्वती के मंत्र और नौ शक्तियों के विषय में विस्तार से बताया गया है| इसके अतिरिक्त इस पुराण में श्राद्ध-तर्पण, मुक्ति के उपायों तथा जीव की गति, आत्मज्ञान का विवेचन, आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयों के वर्णन के साथ मृत जीव के अन्तिम समय में किये जाने वाले कृत्यों का का विस्तृत वर्णन मिलता है|
पद्म पुराण
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए अठारण पुराणों में से एक पुराण ग्रंथ है| सभी अठारह पुराणों की गणना में ‘पदम पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है| श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान रखा जा सकता है| पहला स्थान स्कंद पुराण को प्राप्त है| पदम का अर्थ है-‘कमल का पुष्प’| चूंकि सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने भगवान् नारायण के नाभि कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पदम पुराण की संज्ञा दी गई है| इस पुराण में भगवान् विष्णु की विस्तृत महिमा के साथ, भगवान् श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के चरित्र, विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य शालग्राम का स्वरूप, तुलसी-महिमा तथा विभिन्न व्रतों का सुन्दर वर्णन है|
‘पद्म पुराण’ हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में विशाल पुराण है| केवल ‘स्कन्द पुराण’ ही इससे बड़ा है| इस पुराण के श्लोकों की संख्या पचास हज़ार है| वैसे तो इस पुराण से संबंधित सभी विषयों का वर्णन स्थान विशेष पर आ गया है, किन्तु इसमें प्रधानता उपाख्यानों और कथानकों की है| ये कथानक तीर्थों तथा व्रत सम्बन्धी नहीं हैं, वरन् पौराणिक पुरुषों और राजाओं से सम्बन्धित हैं| अन्य पुराणों में यही कथानक जिस रूप में प्राप्त होते हैं, यहाँ ये दूसरे रूप में हैं| ये आख्यान और उपाख्यान सर्वथा नवीन, विचित्र और सामान्य पाठकों को चमत्कृत कर देने वाले हैं|
वाराह पुराण
इस पुराण में भगवान श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है| इसमें भगवान नारायण का पूजन-विधान, शिव-पार्वती की कथाएँ, वराह क्षेत्रवर्ती आदित्य तीर्थों की महिमा, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है|
यह पुराण दो भागों से युक्त है और सनातन भगवान विष्णु के माहात्मय का सूचक है| वाराह पुराण की श्लोक संख्या चौबीस हजार है, इसे सर्वप्रथम प्राचीन काल में वेदव्यास जी ने लिपिबद्ध किया था| इसमें भगवान श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ-यजन, श्राद्ध-तर्पण, दान और अनुष्ठान आदि का शिक्षाप्रद और आत्म कल्याणकारी वर्णन है| भगवान श्रीहरि की महिमा, पूजन-विधान, हिमालय की पुत्री के रूप में गौरी की उत्पत्ति का वर्णन और भगवान शंकर के साथ उनके विवाह की रोचक कथा इसमें विस्तार से वर्णित है| इसके अतिरिक्त इसमें वराह-क्षेत्रवर्ती आदित्य-तीर्थों का वर्णन, भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं के प्रभाव से मथुरामण्डल और व्रज के समस्त तीर्थों की महिमा और उनके प्रभाव का विशद तथा रोचक वर्णन है|
लिङ्ग पुराण
अट्ठारह पुराणों में भगवान महेश्वर की महान महिमा को बतलाने वाला लिंग पुराण (ङळपसर र्झीअॅरपर) विशिष्ट पुराण कहा गया है| भगवान शिव के ज्योर्ति लिंगों की कथा, ईशान कल्प के वृत्तान्त सर्वविसर्ग आदि दशा लक्षणों सहित वर्णित है| भगवान शिव की महिमा को बतलाने वाला लिंग पुराण में ११,००० श्लोकों में किया गया है| यह समस्त पुराणों में श्रेष्ठ है| वेदव्यास कृत इस पुराण में पहले योग फिर कल्प के विषय में बताया गया है|
लिंग शब्द के प्रति आधुनिक समाज में ब़ड़ी भ्रान्ति पाई जाती है| लिंग शब्द का शाब्दिक अर्थ चिन्ह अथवा प्रतीक है — जैसा कि कणाद मुनि कृत वैशेषिक दर्शन ग्रंथ में पाया जाता है| भगवान महेश्वर आदि पुरुष हैं| यह शिवलिंग उन्हीं भगवान शंकर की ज्योतिरूपा चिन्मय शक्ति का चिन्ह है|
इसके उद्भव के विषय में सृष्टि के कल्याण के लिए ज्योर्ति लिंग द्वारा प्रकट होकर ब्रह्मा तथा विष्णु जैसों अनादि शक्तियों को भी आश्चर्य में डाल देने वाला घटना का वर्णन, इस पुराण के वर्ण्य विषय का एक प्रधान अंग है| फिर मुक्ति प्रदान करने वाले व्रत-योग शिवार्चन यज्ञ हवनादि का विस्तृत विवेचन प्राप्त है| यह शिव पुराण का पूरक ग्रन्थ है|
स्कन्द पुराण
विभिन्न विषयों के विस्तृत विवेचन की दृष्टि से पुराणों में स्कन्दपुराण सबसे बड़ा है| भगवान स्कन्द के द्वारा कथित होने के कारण इसका नाम ‘स्कन्दपुराण’ है|यह खण्डात्मक और संहितात्मक दो स्वरूपों में उपलब्ध है| दोनों खण्डों में ८१-८१ हजार श्लोक हैं| खण्डात्मक स्कन्द पुराण में क्रमशः माहेश्वर, वैष्णव, ब्राह्म, काशी, अवन्ती (ताप्ती और रेवाखण्ड) नागर तथा प्रभास-ये सात खण्ड हैं| संहितात्मक स्कन्दपुराण में सनत्कुमार, शंकर, ब्राह्म, सौर, वैष्णव और सूत-छः संहिताएँ हैं| इसमें बदरिकाश्रम, अयोध्या, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, कन्याकुमारी, प्रभास, द्वारका, काशी, कांची आदि तीर्थों की महिमा; गंगा, नर्मदा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों के उद्गम की मनोरथ कथाएँ; रामायण, भागवतादि ग्रन्थों का माहात्म्य, विभिन्न महीनों के व्रत-पर्व का माहात्म्य तथा शिवरात्रि, सत्यनारायण आदि व्रत-कथाएँ अत्यन्त रोचक शैली में प्रस्तुत की गयी हैं| विचित्र कथाओं के माध्यम से भौगोलिक ज्ञान तथा प्राचीन इतिहास की ललित प्रस्तुति इस पुराण की अपनी विशेषता है| आज भी इसमें वर्णित विभिन्न व्रत-त्योहारों के दर्शन भारत के घर-घर में किये जा सकते हैं|
इसमें लौकिक और पारलौकिक ज्ञानके अनन्त उपदेश भरे हैं| इसमें धर्म, सदाचार, योग, ज्ञान तथा भक्तिके सुन्दर विवेचनके साथ अनेकों साधु-महात्माओं के सुन्दर चरित्र पिरोये गये हैं| आज भी इसमें वर्णित आचारों, पद्धतियोंके दर्शन हिन्दू समाज के घर-घरमें किये जा सकते हैं| इसके अतिरिक्त इसमें भगवान शिव की महिमा, सती-चरित्र, शिव-पार्वती-विवाह, कार्तिकेय-जन्म, तारकासुर-वध आदि का मनोहर वर्णन है|
स्कन्द पुराण एक शतकोटि पुराण है| जिसमें शिव की महिमा का वर्णन किया है, उसके सारभूत अर्थ का व्यासजी ने स्कन्दपुराण में वर्णन किया है| स्कन्द पुराण इक्यासी हजार श्लोकों से युक्त है एवं सात खण्ड है| पहले खण्ड का नाम माहेश्वर खण्ड है, इसमें बारह हजार से कुछ कम श्लोक है| दूसरा वैष्णवखण्ड है, तीसरा ब्रह्मखण्ड है| चौथा काशीखण्ड एवं पांचवाँ अवन्तीखण्ड है फिर क्रमश: नागर खण्ड एवं प्रभास खण्ड है|
अग्निपुराण
अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है| विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है| अनेक विद्वानों ने विषयवस्तु के आधार पर इसे ‘भारतीय संस्कृति का विश्वकोश‘ कहा है| अग्निपुराण में त्रिदेवों — ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव तथा सूर्य की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है| इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है|
इस पुराण के वक्ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह ‘अग्निपुराण’ कहलाता है| अत्यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है| इस दृष्टि से अन्य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्ट तथा महत्वपूर्ण हो जाता है| पद्म पुराण में भगवान् विष्णु के पुराणमय स्वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के १८ अंग कहे गए हैं| उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्णु का बायां चरण कहा गया है|
अग्नि पुराण के अनुसार इसमें सभी विधाओं का वर्णन है| यह अग्निदेव के स्वयं के श्रीमुख से वर्णित है, इसलिए यह प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण पुराण है| यह पुराण अग्निदेव ने महर्षि वशिष्ठ को सुनाया था| यह पुराण दो भागों में हैं पहले भाग में पुराण ब्रह्म विद्या का सार है| इसके आरंभ में भगवान विष्णु के दशावतारों का वर्णन है| इस पुराण में ११ रुद्रों, ८ वसुओं तथा १२ आदित्यों के बारे में बताया गया है| विष्णु तथा शिव की पूजा के विधान, सूर्य की पूजा का विधान, नृसिंह मंत्र आदि की जानकारी भी इस पुराण में दी गयी है| इसके अतिरिक्त प्रासाद एवं देवालय निर्माण, मूर्ति प्रतिष्ठा आदि की विधियाँ भी बतायी गयी है|
इसमें भूगोल, ज्योतिः शास्त्र तथा वैद्यक के विवरण के बाद राजनीति का भी विस्तृत वर्णन किया गया है जिसमें अभिषेक, साहाय्य, संपत्ति, सेवक, दुर्ग, राजधर्म आदि आवश्यक विषय निर्णीत है| धनुर्वेद का भी बड़ा ही ज्ञानवर्धक विवरण दिया गया है जिसमें प्राचीन अस्त्र-शस्त्रों तथा सैनिक शिक्षा पद्धति का विवेचन विशेष उपादेय तथा प्रामाणिक है| इस पुराण के अंतिम भाग में आयुर्वेद का विशिष्ट वर्णन अनेक अध्यायों में मिलता है, इसके अतिरिक्त छंदःशास्त्र, अलंकार शास्त्र, व्याकरण तथा कोश विषयक विवरण भी दिये गए है|
मत्स्य पुराण
मत्स्य पुराण पुराण में भगवान श्रीहरि के मत्स्य अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है| इसमें जल प्रलय, मत्स्य व मनु के संवाद, राजधर्म, तीर्थयात्रा, दान महात्म्य, प्रयाग महात्म्य, काशी महात्म्य, नर्मदा महात्म्य, मूर्ति निर्माण माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है| चौदह हजार श्लोकों वाला यह पुराण भी एक प्राचीन ग्रंथ है|
इस पुराण में सात कल्पों का कथन है, नृसिंह वर्णन से शुरु होकर यह चौदह हजार श्लोकों का पुराण है| मनु और मत्स्य के संवाद से शुरु होकर ब्रह्माण्ड का वर्णन ब्रह्मा देवता और असुरों का पैदा होना, मरुद्गणों का प्रादुर्भाव इसके बाद राजा पृथु के राज्य का वर्णन वैवस्त मनु की उत्पत्ति व्रत और उपवासों के साथ मार्तण्डशयन व्रत द्वीप और लोकों का वर्णन देव मन्दिर निर्माण प्रासाद निर्माण आदि का वर्णन है| इस पुराण के अनुसार मत्स्य (मछ्ली) के अवतार में भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नांव की रक्षा की थी| इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया| एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया|
कूर्म पुराण
महापुराणों की सूची में पंद्रहवें पुराण के रूप में परिगणित कूर्मपुराण का विशेष महत्त्व है| सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण करके इस पुराण को राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था, पुनः भगवान कूर्म ने उसी कथानक को समुद्र-मन्थन के समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारद आदि ऋषिगणों से कहा| तीसरी बार नैमिषारण्य के द्वादशवर्षीय महासत्र के अवसर पर रोमहर्षण सूत के द्वारा इस पवित्र पुराण को सुनने का सैभाग्य अट्ठासी हजार ऋषियों को प्राप्त हुआ| भगवान कूर्म द्वारा कथित होने के कारण ही इस पुराण का नाम कूर्म पुराण विख्यात हुआ|
सत्रह श्लोकों का यह पुराण विष्णु जी ने कूर्म अवतार से राजा इन्द्रद्युम्न को दिया था| इसमें विष्णु और शिव की अभिन्नता कही गयी है| पार्वती के आठ सहस्र नाम भी कहे गये हैं| काशी व प्रयाग क्षेत्र का महात्म्य, ईश्वर गीता, व्यास गीता आदि भी इसमें समाविष्ट हैं| यद्यपि कूर्म पुराण एक वैष्णव प्रधान पुराण है, तथापि इसमें शैव तथा शाक्त मत की भी विस्तृत चर्चा की गई है| इस पुराण में पुराणों में पांचों प्रमुख लक्षणों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर एवं वंशानुचरित का क्रमबद्ध तथा विस्तृत विवेचन किया गया है|
इस पुराण में १७,००० श्लोक है, इस पुराण में पुराणों में पांचों प्रमुख लक्षणों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर एवं वंशानुचरित का क्रमबद्ध तथा विस्तृत विवेचन किया गया है एवं सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है| बीच-बीच में अध्यात्म-विवेचन, कलिकर्म और सदाचार आदि पर भी प्रकाश डाला गया है|
शिव पुराण
इस पुराण में परात्पर ब्रह्म शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है| इसमें इन्हें पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है| शिव-महिमा, लीला-कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुन्दर संयोजन है| इसमें भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है| शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं| सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है| इसमें भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है|
‘शिव पुराण’ का सम्बन्ध शैव मत से है| इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है| प्राय: सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है| कहा गया है कि शिव सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं| किन्तु ‘शिव पुराण’ में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है|
‘शिवपुराण’ एक प्रमुख तथा सुप्रसिद्ध पुराण है, जिसमें परात्मपर परब्रह्म परमेश्वर के ‘शिव’ (कल्याणकारी) स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा एवं उपासना का सुविस्तृत वर्णन है|