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24.99° से.
23.71°से. - 24.99°से.
रविवार, 12 जानेवारी टूटे हुए बादल22.37°से. - 25.6°से.
सोमवार, 13 जानेवारी साफ आकाश23.45°से. - 26.84°से.
मंगळवार, 14 जानेवारी साफ आकाश23.9°से. - 25.67°से.
बुधवार, 15 जानेवारी साफ आकाश23.94°से. - 25.02°से.
गुरुवार, 16 जानेवारी घनघोर बादल23.69°से. - 26.74°से.
शुक्रवार, 17 जानेवारी घनघोर बादलअथर्ववेद परिचय (हिंदी)
– अनुक्रमणिका
अथर्ववेद हिन्दू धर्म के पवित्र चार वेदो में से चौथे क्रम का वेद है| अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता है, इसमें देवताओ की स्तुति, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं| जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद का विद्वान रहता हो उस राज्य में शांति स्थापना में लीन रहता है| वह राज्य उपद्रव रहित रहता है, और उन्नति के पथ पर चलता हैं|
भगवान ने सब से पहले महर्षि अंगिरा को अथर्ववेद का ज्ञान दिया था, और महर्षि अंगिरा ने अथर्ववेद का ज्ञान ब्रह्मा को दिया|
यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः|
निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्॥
‘ये त्रिषप्ताः परियन्ति’ अथर्ववेद का प्रथम मंत्र है |
अथर्ववेद का परिचय :-
अथर्ववेद में कुल २० काण्ड, ७३० सूक्त और ६००० मन्त्र होने का मिलता है, परंतु किसी-किसी में ५९८७ या ५९७७ मन्त्र ही मिलते हैं| और लगभग १२०० मंत्र ऋग्वेद के हैं| अथर्ववेद का २० काण्ड ऋग्वेद की रचना हे| ऋषिमुनि और विद्वानों के अनुसार १९ वा काण्ड और २० वा काण्ड परवर्ती है|
अथर्ववेद में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन मिलता है, इसलिए आयुर्वेद में विश्वास किया जाता था| अथर्ववेद में विवाहित जीवन में पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का श्रेष्ठ निर्णय करता है| अथर्ववेद में ब्रह्म भक्ति के बहोत सारे मन्त्र दिए गए है|
अथर्ववेद के अधिक महत्त्व विषय :-
ब्रह्मज्ञान,
औषधि प्रयोग,
रोग निवारण,
जन्त्र-तन्त्र,
टोना-टोटका आदि|
अथर्ववेद का रचना काल :-
वैदिक पुरोहित वर्ग यज्ञों व देवों को अनदेखा करने के कारण अथर्ववेद को अन्य तीनो वेद के बराबर नहीं मानते थे| अथर्ववेद को यह स्थान बाद में मिला| अथर्ववेद की भाषा ऋग्वेद की भाषा के सामने स्पष्ट रूप से बाद की ही है, और ब्राह्मण ग्रंथों से भी मिलती है| इसलिये अथर्ववेद को अनुमानित मात्रा से १००० ई.पू. का माना जा सकता है| अथर्ववेद की रचना ‘अथवर्ण‘ तथा ‘आंगिरस‘ ऋषियों द्वारा की गई है| इसीलिए अथर्ववेद को ‘अथर्वांगिरस वेद’ भी कहते है| अथर्ववेद को इसके अलावा जो निचे दिए गए नामो से भी जाना जाता है|
१ अथर्वांगिरस,
२ ब्रह्मवेद,
३ भैषज्य वेद और
४ महीवेद
अथर्ववेद के विषय में कुछ मुख्य तथ्य :-
१ अथर्ववेद के बारे में ऐसा माना जाता हे की भाषा और स्वरूप के आधार पर अथर्ववेद की रचना तीनो वेदो के बादमे हुई है|
२ ॠग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन वेदो की वैदिक धर्म की नज़र में बड़ा ही महत्व है|
३ अथर्ववेद में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन मिलता है, इसलिए आयुर्वेद में विश्वास किया जाता है|
४ अथर्ववेद में विवाहित जीवन में पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का श्रेष्ठ निर्णय करता है|
५ अथर्ववेद में ब्रह्म भक्ति के बहोत सारे मन्त्र दिए गए है|
अथर्ववेद की शाखायें :-
अथर्ववदे में कुरू देश को समृद्ध होने की अछि व्याख्या मिलता है| अथर्ववेद में श्रेष्ठ विचारधारा और अधम विचारधाराओं का संयोग है| अथर्ववेद का उत्तर वैदिक काल में बहोत ही विशेष महत्त्व रहा है| इसी वेद से शान्ति और शक्तिवर्द्धक कर्मा का सम्पादन भी मिलता है| अथर्ववेद में सब से ज्यादा उल्लेख आयुर्वदे विज्ञानं का ही मिलता है| इसके बाद ‘जीवाणु विज्ञान’ तथा ‘औषधियों’ आदि के विषय में जानकारी अथर्ववेद से ही प्राप्त होती है| सर्वप्रथम अथर्ववेद के भूमि सूक्त द्वारा राष्ट्रीय भावना का भली—भाँति ज्ञात हुआ था| इस वेद की दो अन्य शाखायें हैं, जो निचे दी गई है|
१ पिप्पलाद
२ शौनक
अथर्ववेद में कुल २० काण्ड, ७३० सूक्त और गद्य भाग हैं| जिनका व्याख्या निम्न दिखाई गई हैः
१ अथर्ववेद में पहले काण्ड से सातवें काण्ड तक तंत्र-मंत्र संबंधीत प्राथनाएं हैं| लम्बी आयुष्य के लिए मंत्र, उपचार, श्राप, प्रेम मंत्र, प्रार्थना, घनिष्ठता, वेद अध्ययन में सफलता, पाप का प्रायश्चित आदि मन्त्र दिए गए है|
२ आठवें काण्ड से बारहवें काण्ड में ब्रह्मांडीय सूक्त भी शामिल हैं, जो ऋग्वेद के सूक्तों को ही प्रवाहित रखते हैं| उपनिषदों के बहुत कठिन स्मरण कीओर ले जाते हैं|
३ तरह काण्ड से बिसवे काण्ड में ब्रह्मांडीय सिद्धांत, विवाह प्राथनाएं, अंतिम संस्कार के मंत्र, व्रत्य का महिमामंडन, अनुष्ठानिक मंत्र और अतिथि सत्कार के मह्त्व का वर्णन किया गया है|
अथर्ववेद की विशेषताएँ :-
१ अथर्ववेद में ऋग्वेद और सामवेद से भी मन्त्र लिए गए है|
२ अथर्ववेद मन्त्र-तन्त्र सम्बन्धित राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियाँ का महत्वपूंर्ण विषय है|
३ अथर्ववेद में ऋग्वेद के उच्च कोटि के देवताओं को भिन्न स्थान प्राप्त है|
४ अथर्ववेद में स्पष्ट है कि आर्यों में प्रकृति की पूजा का तिरस्कार किया गया था, और प्रेत-आत्माओं, तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा था|