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शुक्रवार, 17 जानेवारी घनघोर बादल१८ पुराण और २१ उप-पुराण का सारगर्भित रहस्य (हिंदी)
– लेख सारिणी:-
१८ पुराण और २१ उपपुराण
अठारह पुराणों में अलग-अलग हिन्दू देवी-देवता को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं | पुराण हिंदुओं के धर्मसंबंधी आख्यानग्रंथ हैं, जिनमें सृष्टि, लय, प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वृत्तात आदि हैं| ये वैदिक काल के काफ़ी बाद के ग्रन्थ हैं, जो स्मृति विभाग में आते हैं| भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति-ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं| | पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विशद विवरण दिया गया है | इनमें हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है|
कर्मकांड से ज्ञान की ओर आते हुए भारतीय मानस में पुराणों के माध्यम से भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है| विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ|
माना जाता है कि सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है| प्राचीनकाल से पुराण देवताओं, ऋषियों, मनुष्यों — सभी का मार्गदर्शन करते रहे हैं| पुराण मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं| पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं| पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं| वेद बहुत ही जटिल तथा शुष्क भाषा-शैली में लिखे गए हैं| वेदव्यास जी ने पुराणों की रचना और पुनर्रचना की| कहा जाता है, ‘‘पूर्णात् पुराण ’’ जिसका अर्थ है, जो वेदों का पूरक हो, अर्थात् पुराण (जो वेदों की टीका हैं)|
वेदों की जटिल भाषा में कही गई बातों को पुराणों में सरल भाषा में समझाया गया हैं| पुराण-साहित्य में अवतारवाद को प्रतिष्ठित किया गया है| निर्गुण निराकार की सत्ता को मानते हुए सगुण साकार की उपासना करना इन ग्रंथों का विषय है| पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र में रखकर पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म और कर्म-अकर्म की कहानियाँ हैं| प्रेम, भक्ति, त्याग, सेवा, सहनशीलता ऐसे मानवीय गुण हैं, जिनके अभाव में उन्नत समाज की कल्पना नहीं की जा सकती| पुराणों में देवी-देवताओं के अनेक स्वरूपों को लेकर एक विस्तृत विवरण मिलता है| पुराणों में सत्य को प्रतिष्ठित में दुष्कर्म का विस्तृत चित्रण पुराणकारों ने किया है| पुराणकारों ने देवताओं की दुष्प्रवृत्तियों का व्यापक विवरण किया है लेकिन मूल उद्देश्य सद्भावना का विकास और सत्य की प्रतिष्ठा ही है|
पुराणों में वैदिक काल से चले आते हुए सृष्टि आदि संबंधी विचारों, प्राचीन राजाओं और ऋषियों के परंपरागत वृत्तांतों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथाओं की विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं| पुराणों को मनुष्य के भूत, भविष्य, वर्तमान का दर्पण भी कहा जा सकता है | इस दर्पण में मनुष्य अपने प्रत्येक युग का चेहरा देख सकता है| इस दर्पण में अपने अतीत को देखकर वह अपना वर्तमान संवार सकता है और भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है | अतीत में जो हुआ, वर्तमान में जो हो रहा है और भविष्य में जो होगा, यही कहते हैं पुराण| इनमें हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है| इनकी भाषा सरल और कथा कहानी की तरह है| पुराणों को वेद और उपनिषद जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है|
पुराण परिचय तथा अर्थ
‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है — ‘प्राचीन आख्यान’ या ‘पुरानी कथा’ | ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है — अनागत एवं अतीत| ‘अण’ शब्द का अर्थ होता है -कहना या बतलाना| रघुवंश में पुराण शब्द का अर्थ है पुराण पत्रापग मागन्नतरम् एवं वैदिक वाङ्मय में प्राचीन: वृत्तान्त: दिया गया है|
सांस्कृतिक अर्थ से हिन्दू संस्कृति के वे विशिष्ट धर्मग्रंथ जिनमें सृष्टि से लेकर प्रलय तक का इतिहास-वर्णन शब्दों से किया गया हो, पुराण कहे जाते है| पुराण शब्द का उल्लेख वैदिक युग के वेद सहित आदितम साहित्य में भी पाया जाता है अत: ये सबसे पुरातन (पुराण) माने जा सकते हैं|
अथर्ववेद के अनुसार ऋच: सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह ११.७.२) अर्थात् पुराणों का आविर्भाव ऋक्, साम, यजुस् औद छन्द के साथ ही हुआ था| शतपथ ब्राह्मण (१४.३.३.१३) में तो पुराणवाग्ङमय को वेद ही कहा गया है| छान्दोग्य उपनिषद् (इतिहास पुराणं पञ्चम वेदानांवेदम् ७.१.२) ने भी पुराण को वेद कहा है| बृहदारण्यकोपनिषद् तथा महाभारत में कहा गया है कि इतिहास पुराणाभ्यां वेदार्थ मुपबर्हयेत् अर्थात् वेद का अर्थविस्तार पुराण के द्वारा करना चाहिये| इनसे यह स्पष्ट है कि वैदिक काल में पुराण तथा इतिहास को समान स्तर पर रखा गया है|
अमरकोष आदि प्राचीन कोशों में पुराण के पांच लक्षण माने गये हैं : सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (प्रलय, पुनर्जन्म), वंश (देवता व ऋषि सूचियां), मन्वन्तर (चौदह मनु के काल), और वंशानुचरित (सूर्य चंद्रादि वंशीय चरित) |
पुराणों की संख्या अठारह क्यों ?
अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, सिद्धि, ईशित्व या वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, सृष्टि, पराकायप्रवेश, वाकसिद्धि, कल्पवृक्षत्व, संहारकरणसामर्थ्य, भावना, अमरता, सर्वन्याय — ये अट्ठारह सिद्धियाँ मानी जाती हैं|
सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत ( पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश ), पाँच ज्ञानेद्री ( कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ ) ये अठारह तत्त्व वर्णित हैं|
छः वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्यायशास्त्र, पुराण, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद और गंधर्व वेद ये अठारह प्रकार की विद्याएँ मानी जाती हैं |
एक संवत्सर, पाँच ऋतुएँ और बारह महीने — ये सब मिलकर काल के अठारह भेदों को बताते हैं |
श्रीमद् भागवत गीता के अध्यायों की संख्या भी अठारह है |
श्रीमद् भागवत में कुल श्लोकों की संख्या अठारह हज़ार है |
श्रीराधा, कात्यायनी, काली, तारा, कूष्मांडा, लक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री, छिन्नमस्ता, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, पार्वती, सिद्धिदात्री, भगवती, जगदम्बा के ये अठारह स्वरूप माने जाते हैं |
श्रीविष्णु, शिव, ब्रह्मा, इन्द्र आदि देवताओं के अंश से प्रकट हुई भगवती दुर्गा अठारह भुजाओं से सुशोभित हैं |
अट्ठारह पुराण
मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् |
अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ॥
इस श्लोक में निम्न शब्दों का प्रयोग जितनी बार हुआ है उसके अनुसार १८ पुराण के नाम है —
म-२, भ-२, ब्र-३, व-४ |
अ-१,ना-१, प-१, लिं-१, ग-१, कू-१, स्क-१ ॥
विष्णु पुराण के अनुसार उनके नाम ये हैं: विष्णु, पद्म, ब्रह्म, शिव (वायु), भागवत (श्रीमद्भागवत), नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वाराह, स्कंद, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड, ब्रह्मांड और भविष्य|
पुराणों में एक विचित्रता यह है कि प्रत्येक पुराण में अठारहो पुराणों के नाम और उनकी श्लोक संख्या है| नाम और श्लोकसंख्या प्रायः सबकी मिलती है, कहीं कहीं भेद है| जैसे:
कूर्म पुराण में अग्नि पुराण के स्थान में वायुपुराण मार्कंडेय पुराण में लिंगपुराण के स्थान में नृसिंहपुराण देवीभागवत में शिव पुराण के स्थान में नारद पुराण और मत्स्य पुराण में वायुपुराण है|
भागवत के नाम से आजकल दो पुराण मिलते हैं, एक श्रीमद्भागवत, दूसरा देवीभागवत| कौन वास्तव में पुराण है, इस पर झगड़ा रहा है| रामाश्रम स्वामी ने ‘दुर्जनमुखचपेटिका’ में सिद्ध किया है कि श्रीमद्भागवत ही पुराण है| इसपर काशीनाथ भट्ट ने ‘दुर्जनमुखमहाचपेटिका’ तथा एक और पंडित ने ‘दुर्जनमुखपद्यपादुका’ देवीभागवत के पक्ष में लिखी थी|
२१ उप पुराण
महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों के अतिरिक्त कुछ उप-पुराणों की भी रचना की है| २१ उप-पुराणों को पुराणों का ही साररूप कहा जा सकता है | उप-पुराण इस प्रकार हैं:
गणेश पुराण
श्री नरसिंह पुराण
कल्कि पुराण
एकाम्र पुराण
कपिल पुराण
दत्त पुराण
श्री विष्णुधर्मौत्तर पुराण
मुद्गगल पुराण
सनत्कुमार पुराण
शिवधर्म पुराण
आचार्य पुराण
मानव पुराण
उश्ना पुराण
वरुण पुराण
कालिका पुराण
महेश्वर पुराण
साम्ब पुराण
सौर पुराण
पराशर पुराण
मरीच पुराण
भार्गव पुराण
१८ पुराणों में श्लोकों की संख्या
संसार की रचना करते समय ब्रह्मा ने एक ही पुराण की रचना की थी| जिसमें एक अरब श्लोक थे| यह पुराण बहुत ही विशाल और कठिन था| पुराणों का ज्ञान और उपदेश देवताओं के अलावा साधारण जनों को भी सरल ढंग से मिले ये सोचकर महर्षि वेद व्यास ने पुराण को अठारह भागों में बाँट दिया था| इन पुराणों में श्लोकों की संख्या चार लाख है| महर्षि वेदव्यास द्वारा रचे गये अठारह पुराणों और उनके श्लोकों की संख्या इस प्रकार है :
ब्रह्मपुराण में श्लोकों की संख्या १०,००० और २४६ अध्याय है|
पद्मपुराण में श्लोकों की संख्या ५५००० हैं|
विष्णुपुराण में श्लोकों की संख्या तेइस हजार हैं|
शिवपुराण में श्लोकों की संख्या चौबीस हजार हैं|
श्रीमद्भावतपुराण में श्लोकों की संख्या अठारह हजार हैं|
नारदपुराण में श्लोकों की संख्या पच्चीस हजार हैं|
मार्कण्डेयपुराण में श्लोकों की संख्या नौ हजार हैं|
अग्निपुराण में श्लोकों की संख्या पन्द्रह हजार हैं|
भविष्यपुराण में श्लोकों की संख्या चौदह हजार पाँच सौ हैं|
ब्रह्मवैवर्तपुराण में श्लोकों की संख्या अठारह हजार हैं|
लिंगपुराण में श्लोकों की संख्या ग्यारह हजार हैं|
वाराहपुराण में श्लोकों की संख्या चौबीस हजार हैं|
स्कन्धपुराण में श्लोकों की संख्या इक्यासी हजार एक सौ हैं|
वामनपुराण में श्लोकों की संख्या दस हजार हैं|
कूर्मपुराण में श्लोकों की संख्या सत्रह हजार हैं|
मत्सयपुराण में श्लोकों की संख्या चौदह हजार हैं|
गरुड़पुराण में श्लोकों की संख्या उन्नीस हजार हैं|
ब्रह्माण्डपुराण में श्लोकों की संख्या बारह हजार हैं|
१८ पुराणों का काल एवं रचयिता
यद्यपि आजकल जो पुराण मिलते हैं, उनमें से अधिकतर पीछे से बने हुए या प्रक्षिप्त विषयों से भरे हुए हैं, तथापि पुराण बहुत प्राचीन काल से प्रचलित थे| बृहदारण्यक और शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि गीली लकड़ी से जैसे धुआँ अलग अलग निकलता है वैसे ही महान भूत के निःश्वास से ऋग्वेद, यजुर्वेद सामवेद, अथर्वांगिरस, इतिहास, पुराणविद्या, उपनिषद, श्लोक, सूत्र, व्याख्यान और अनुव्याख्यान हुए| छांदोग्य उपनिषद् में भी लिखा है कि इतिहास पुराण वेदों में पाँचवाँ वेद है| अत्यंत प्राचीन काल में वेदों के साथ पुराण भी प्रचलित थे जो यज्ञ आदि के अवसरों पर कहे जाते थे| कई बातें जिनके लक्षण वेद और पुराण में सामान रूप से है |
क्या १८ पुराण वेदव्यास रचित पुराणसंहिता से आये है ?
अब प्रश्न यह होता है कि पुराण हैं किसके बनाए| शिवपुराण के अंतर्गत रेवा माहात्म्य में लिखा है कि अठारहों पुराणों के वक्ता मत्यवतीसुत व्यास हैं| यही बात जन साधारण में प्रचलित है| पर मत्स्यपुराण में स्पष्ट लिखा है कि पहले पुराण एक ही था, उसी से १८ पुराण हुए (५३| ४)| ब्राह्मांड पुराण में लिखा है कि वेदव्यास ने एक पुराणसंहिता का संकलन किया था| इसके आगे की बात का पता विष्णु पुराण से लगता है|
उसमें लिखा है कि व्यास का एक लोमहर्षण नाम का शिष्य था जो सूति जाति का था| व्यास जी ने अपनी पुराण संहिता उसी के हाथ में दी| लोमहर्षण के छह शिष्य थे सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णी| इनमें से अकृत- व्रण, सावर्णी और शांशपायन ने लोमहर्षण से पढ़ी हुई पुराणसंहिता के आधार पर और एक एक संहिता बनाई| वेदव्यास ने जिस प्रकार मंत्रों का संग्रहकर उन का संहिताओं में विभाग किया उसी प्रकार पुराण के नाम से चले आते हुए वृत्तों का संग्रह कर पुराणसंहिता का संकलन किया| उसी एक संहिता को लेकर सुत के चेलों ने तीन और संहीताएँ बनाई| इन्हीं संहिताओं के आधार पर अठारह पुराण बने होंगे|
मत्स्य, विष्णु, ब्रह्मांड आदि सब पुराणों में ब्रह्मपुराण पहला कहा गया है| पर जो ब्रह्मपुराण आजकल प्रचलित है वह कैसा है यह पहले कहा जा चुका है| जो कुछ हो, यह तो ऊपर लिखे प्रमाण से सिद्ध है कि अठारह पुराण वेदव्यास के बनाए नहीं हैं| जो पुराण आजकल मिलते हैं उनमें विष्णु पुराण और ब्रह्मांडपुराण की रचना औरों से प्राचीन जान पड़ती है|